प्रशासन निजी अस्पतालों पर कब कसेगा शिकंजा?


अस्पताल में ही मिलती हैं दवाएं
बिना फार्मेसिस्ट्स के ही अनटेªण्ड युवकों से लिया जा रहा काम
डिबाई(द.ट.)।क्षेत्र के लोगों के मन में एक सवाल बार-बार कौंध रहा है कि देश व प्रदेश में सरकारी व गैर सरकारी ज्यादातर संस्थान डिजिटल हो चुके हैं और जीएसटी के दायरे में आ चुके हैं।आज के इस दौर में डाक्टरों को दूसरा भगवान माना जाता है, लेकिन यही भगवान अब व्यापारी बन चुके हैं।इन डाक्टर्स का अब केवल एक ही मकसद रह गया है और वो है सिर्फ पैसा कमाना। क्षेत्र के ज्यादातर निजि अस्पताल मनमानी करने पर उतारू हैं। इन निजी अस्पताल में मरीजों से 200रूपये से लेकर 500रूपये बतौर फीस के रूप में वसूले जाते हैं और सुविधाओं के नाम पर इनके अस्पतालों में मरीजों के लिए पंखों तक की व्यवस्था नहीं है।जितनी इन डॉक्टर्स की फीस है, उनका बिल भी नहीं दिया जाता। मरीजों से वसूले गये रूपये का कोई लेखा-जोखा ये डाक्टर नहीं रखते तो सरकार इनके टर्न ओवर पर कैसे नजर रख सकती है और तो और मरीजों की जांच के बहाने भी मरीजों की जेबों पर डांका डालने से भी नही चुकते ये लोग।
अगर आपके मरीज की हालत ज्यादा खराब है और आप अपने मरीज का इलाज जल्दी कराना चाहते हो तो फिर आपको डाक्टर साहब की इमरजेंसी फीस अर्थात दोगुना फीस देनी होगी और तो और फिर ये डाक्टर साहेब जांच के नाम पर भी हजारों रूपये का भारी भरकम बिल बनाकर मरीज के हाथ मे थमा देते हैं।अगर मरीज के पास पहले से किसी योग्य लैब की जांच जैसे अल्ट्रासाउंड ,एक्स-रे , खून की जांच आदि की रिपोर्ट मौजूद है तो भी यह मनमानी करने से नहीं चूकते हैं और अपने अस्पताल के अन्दर ही लैब में नौसिखिये टेक्नीशियन्स से या अनटेªंण्ड लोगों से जांच कराते है,क्योंकि उन्हें तो सिर्फ और सिर्फ अपना व्यापार बढ़ाना है। इन व्यापारियों का पेट यहाँ तक भी नही भरता और मरीजों को दवाएं लिखने की बारी आती है तो यह डॉक्टर दवाएं भी ऐसी लिखते हैं,जो इनके अस्पताल में मौजूद दुकान पर होगी, क्योंकि इन दवाओं में भी डॉक्टर्स का मोटा कमीशन तय होता है, ऐसे डाक्टर्स के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही क्यों नहीं होती ,ऐसा कहना जनता का है।
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