डिबाई क्षेत्र में दो प्रसिद्ध मंदिरों के अजीब रहस्य


 


 


 


 



डिबाई(नीरज सुदामा)।जिले के डिबाई क्षेत्र के गांव कर्णवास स्थित मां कल्याणी देवी मंदिर का प्रसिद्ध प्रमुख कारण कुछ इस तरह है कि पांडवों के समय का कर्णवास स्थित मां कल्याणी देवी मंदिर पर हर साल नवरात्रों में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और माता कल्याणी के दर्शन कर अपनी इच्छा की प्राप्ति करते हैं। मां कल्याणी का मंदिर ही कर्णवास की प्रसिद्धि का प्रमुख कारण है।जगदम्बा कल्याणी का मंदिर कितना प्राचीन है?इस विषय में कुछ भी कहना कठिन है। आज से लगभग 70 वर्ष पहले यहां पर छोटी ईंटों से बना प्राचीन मंदिर था। यह मंदिर लगभग 400 वर्ष पूर्व डोडिया खेड़ा के राव चंद्रभानु सिंह के पुत्र कबीर शाह द्वारा कच्चे किले के अवशेषों के बीच बनवाया गया था। उससे पहले भी यहां मंदिर था ,इसके वीर लेखन मिलते हैं। मंदिर अपने प्राचीन रूप से छोटा अवश्य था ,किंतु देश के दूरस्थ क्षेत्रों से दर्शनार्थी व श्रद्धालु भक्त यहां आते हैं। आज से लगभग 70 वर्ष पहले हाथरस के सेठ बांगला यहां मां के दर्शन के लिए आए थे। वे निःसंतान थे।अतः उन्होंने माँ से प्राथना की कि अगर मेरे घर में संतान हो जाए तो माँ का अच्छा सा मंदिर बनवाऊंगा। यहाँ से जाने के एक वर्ष के अन्दर उनके यहाँ पुत्र का जन्म हुआ। इसी उपलक्ष में उन्होंने कल्याणी देवी के वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया।
कहा जाता है कि नए मंदिर के निर्माण हेतु नींव की खुदाई करते समय काफी गहराई में तीन अन्य प्राचीन प्रतिमाएं भी प्राप्त हुई थी। इन मूर्तियों को यहां के ब्राह्मणों ने तत्कालीन पुरातत्व संग्रहालय में जांच हेतु भेजा। जहां इन्हें 3000 वर्ष पूर्व से प्रमाणित किया गया। यद्यपि यह मूर्ति आज भी वहीं है व मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई संदेह नहीं है तो यहां पूरे वर्ष ही देश के दूरस्थ भागों से श्रद्धालु आते हैं, किंतु विशेषकर अश्विन चैत्र की नवरात्रियों एवं आषाढ़ शुल्क पक्ष में श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ रहती है। लोगों का मानना है कि वैष्णो देवी ,नगरकोट ,पूर्णागिरि ,ज्वाला देवी आदि कहीं भी देवी दर्शन के बाद मां कल्याणी देवी के दर्शन करने से ही जात पूरी होती है। आसपास के जनपदों में भक्त कल्याणी देवी के दर्शन करने के बाद ही बेलोन में सर्वमंगला भवानी के दर्शन के लिए जाते हैं। भक्तों का मानना है कि मां कल्याणी क्षेत्र में उपलब्ध गाय के गोबर से मां के मंदिर के पीछे सतिया चिन्ह बनाकर मंन्नत मांगने से मांगी मनोकामनाएं अवश्य ही पूरी होती हैं। यहीं कारण है कि नवरात्रि में यहां विशेष भीड़ रहती है। यहां नारियल भोग ,छत्र ,ध्वजा के साथ सोना चांदी आदि का भी चढ़ावा आता है। यही कारण है कि यहां का पांडा वर्ग हमेशा से ही धनवान और संपन्न है। लोगों का यह भी कहना है कि इतने प्राचीन मंदिर का रास्ता क्षतिग्रस्त है। इस रास्ते को लिंक रास्ते से जोड़ा जाए और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना न करना पड़े। मां के दर्शन के लिए 12माह श्रद्धालु आते हैं। कर्णवास में गंगा स्नान करने के बाद माता रानी के दर्शन अवश्य करते हैं।
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