घरौंडा(दर्पण टाइम्स)।शहर के रेलवे रोड स्थित प्रसिद्ध देवी मंदिर में श्रीमद्भागवत कथा की शुरूआत हुई। श्रद्धालुओं ने संगीतमय कथा का श्रवण किया और पुण्य के भागी बनें। कथावाचक आचार्य मणिप्रसाद गौत्तम ने श्रद्धालुओं को श्रीमद्भागवत कथा के महत्व से परिचित करवाया। आचार्य गौत्तम ने प्रवचन करते हुए कहा कि सच्चिदानंदस्वरुप भगवान श्रीकृष्ण को हम नमस्कार करते हैं जो जगत की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु तथा आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक तीनों प्रकार के तापों का नाश करने वाले हैं।
कहते हैं कि अनेक पुराणों और महाभारत की रचना के उपरान्त भी भगवान व्यास जी को परितोष नहीं हुआ। परम आह्लाद तो उनको श्रीमद् भागवत की रचना के पश्चात् ही हुआ, कारण कि भगवान श्रीकृष्ण इसके कुशल कर्णधार हैं, जो इस असार संसार सागर से सद्यरू सुख-शांति पूर्वक पार करने के लिए सुदृढ़ नौका के समान हैं।आचार्य मणिप्रसाद गौत्तम ने कहा कि श्रीमद् भागवत ग्रन्थ प्रेमाश्रुसक्ति नेत्र, गदगद कंठ, द्रवित चित्त एवं भाव समाधि निमग्न परम रसज्ञ श्रीशुकदेव जी के मुख से उद्गीत हुआ। सम्पूर्ण सिद्धांतो का निष्कर्ष यह ग्रन्थ जन्म व मृत्यु के भय का नाश कर देता है, भक्ति के प्रवाह को बढ़ाता है तथा भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता का प्रधान साधन है। मन की शुद्धि के लिए श्रीमद् भगवत से बढ़कर कोई साधन नहीं है।उन्होंने प्रवचन करते हुए कहा कि यह श्रीमद् भागवत कथा देवताओं को भी दुर्लभ है तभी परीक्षित जी की सभा में शुकदेव जी ने कथामृत के बदले में अमृत कलश नहीं लिया। ब्रह्मा जी ने सत्यलोक में तराजू बाँध कर जब सब साधनों, व्रत, यज्ञ, ध्यान, तप, मूर्तिपूजा आदि को तोला तो सभी साधन तोल में हल्के पड़ गए और अपने महत्व के कारण भागवत ही सबसे भारी रहा। पठन-पाठन व श्रवण से तत्काल मोक्ष देने वाले इस महाग्रंथ को सप्ताह-विधि से श्रवण करने पर यह निश्चय ही भक्ति प्रदान करता है।